Band me guzaara

अब हर वक़्त ये मन करता है किसी एक ऐसे शख्स के साथ गुज़ारे जो हो तो आस पास ही,पर दूर भी कुछ कम नही।

नवीन योजना  “स्वतः बंधन” के अंतर्गत सरकार छूट देती की फलानी तारीख़ से फलानी तारीख़ तक घर मे रहना है,मगर किसके घर मे और किसके साथ वो आप स्वयं चुनेगे। अब ये अनकही बंदिश हठा दी जाती है कि आपने अपने ही घर मे अपने ही घर वालो के साथ बंद होना है। आप जिसके साथ चाहे उसके साथ स्वतः बंधन में रहेंगे।
नियम एवम शर्त इतनी की सामने वाला (जिसके साथ आप कुछ दिन बंधन में जा रहे हो) भी आपके साथ रहने को लिखित रूप से राजी हो। बच्चे है तो वो बड़ो की आज्ञा से हमउम्र वाले के साथ बंधन में रहेंगे। बाकी सभी वर्ग अपनी सोच और रिश्ते के हिसाब से साथ रहेंगे। किसी भी प्रकार की मानसिक और शारिरिक प्रताड़ना इस दौरान  दंडनीय अपराध की श्रेणी में आएगी।

भाईसाब… अब देखो आप मजे। सोच कर ही कितने अभिलाषित अनुगृहीत और शुद्ध प्रेम की अनुभूति हो रही है। जिसे आज तक सिर्फ दूर से ही देखा हो, उसके साथ अधिकारीरिक रूप से रहना  💑 मतलब घर से बाहर जाने का तो फिर कोई सवाल ही नही उठता। आज तक जो या तो स्वपन में या फिर हकीकत से बाहर हो उसके साथ चारदीवारी में रहना।  कितना खूबसूरत होगा उसके साथ रहना जिसे आज तक सिर्फ मोबाइल स्क्रीन पर ही देखा हो, मतलब बार बार ऑनलाइन देखने का काम खत्म, क्योकि जिसे ऑनलाइन ताक रहे थे वो तो साथ आंगन में ही है। सारी दीन दुनिया से अलग होकर, किसी एक के करीब आना। कुछ ऐसे करीब आना की पता ही ना चले कि दिन कौनसा है,मन करे ये बंधन और बढता रहे…

सुबह की चाय से शुरुवात,आंखे खुले तो कोहिनूर सी आंखों से मुलाकात। जिसे आज तक सजे देखा,उसे बिखरे बाल तंग लिबास मे निहारना। गीतों पर साथ करते कसरत, साथ गाने की करते मशक़्क़त।
घर की सफाई में हिस्सेदारी, जुठे बर्तन धोने की जिम्मेदारी। आम से खाने में भी खूब स्वाद, तक्कलुफ पर रखना पड़े ध्यान। बाते इतनी की हँसना,बाते इतनी की रात भी न सोना। मामूली सी हो लड़ाई, फिर हो कुछ समझाईश।
साथ दिन रात का खाना, बड़ी उम्मीदों हो गयी,  भले लॉक डाउन खत्म हो जाये पर तुम दूर मत जाना।
मेरे साथ रहना,तुम भी ये कहना।


पिछले लॉक डाउन के भांति इस बार भी एक गाने की पंक्ति बार बार दोहरा रहा हूं… 🎶

तुम होती तो कैसा होता
तुम ये कहती, तुम वो कहती
तुम इस बात पे हैरां होती
तुम उस बात पे कितना हँसती
तुम होती तो ऐसा होता, तुम होती तो वैसा होता
मैं और मेरी तनहाई, अक्सर ये बातें करते हैं। 👧💚

मेरा हाल भी कुछ ऐसा ही है। पर इस बात से कोई मुकर नही सकता, की वो घर मे तंग हो रहा है और घर वालो से परेशान भी हो रहा है।  जरूर घर वाले दोस्त ,गुरु, प्रेमी सभी से बढ़कर होते है,पर आज वक़्त ऐसा है कि हर मन कुछ परिवर्तन चाहता है। मानो या ना मानो ये मन अब व्हाट्सएप्प के झूठे कॉन्टेक्ट्स और फेसबुक की नकली दोस्ती से भी ऊब चुका है, अब हर वक़्त ये मन करता है किसी एक ऐसे शख्स के साथ गुज़ारे जो हो तो आस पास ही,पर दूर भी कुछ कम नही। ये जिंदगी अब नए चेहरे चाहती है। ये वक़्त की जररूत है, पर हम इसे समझ नही पा रहे, यही कारण है डिप्रेशन,झगड़ा, मन मुटाव आज इस दौर में हर घर मे अपनी जगह कर चुका है।
वैसे अगर ऐसी योजना पारित हो जाती तो लॉकडाउन महज कुछ सप्ताह ही चलता क्योकि घर रहने की इतनी बड़ी वजह तो खुद अपने साथ ही है,कौन उस कीमती वक़्त को गवा कर बाहर सुनसान सड़को पर भटके। कौन घर बैठी हरियाली को छोड़ बाहर बंजर जगह पैर रखे। अभी लोग जैसे दूध राशन या टीके के बहाने बाहर घूमते है, वो सब भी बंद ! और मैं दावे के साथ कहता हूं पहले वाले लॉकडाउन  से ज्यादा गहरा सन्नटा सड़को पर हो जाये अगर कोई ऐसी योजना होती। प्रशासन को किसी से नही कहना पड़ता कि मास्क पहने,दूरी बनाए; क्योकि बाहर कोई मिलता ही नही। लापरवाह भी कोई नही होता, सिर्फ प्यार ही प्यार होता। अब वो प्यार अपने जिगरी दोस्त के साथ रहने में हो सकता है,अपने चाचा ताऊ या मौसी के भाई बहनो के साथ रहने में हो सकता है,या फिर स्कूल वाली प्रियतमा के साथ रहने में भी हो सकता है।

लॉकडाउन का मुख्य उद्देश्य जनता को घरो में लॉक रखना है ताकि संक्रमण की कड़ी को तोड़ा जा सके। और सरकार के पास इतना फ़िज़ूल वक़्त नही की वो इस तरह सोचे जैसे मैंने कल्पना की। असल बात यही है कि हमे अभी रहना घरो में ही है वो भी अपने प्यारे घर वालो के साथ। वो लोग जो ऐसे वीडियो बनाते है ना कि ‘लॉकडाउन में कैद हुए अपनी प्रेमिका के साथ’ ,सब झूठ है!  पूरा मुल्क अपने बीवी, बच्चो, माता पिता, भाई बहनों के साथ अपने ही घरो में है। ये किसी व्यक्ति विशेष के साथ रहना कल्पना मात्र है,मन बहलाने के लिए,इस तनाव में कुछ देर मुस्कराने के लिए क्योकि आज इस जमीन पर कोई ऐसा नही जो दर्द भरी सांसे ना ले रहा हो।

ये अंदर रह कर कौनसा वक़्त ना देखा
किसी ने खो कर देखा,किसी ने रो कर देखा।
सोच रहा हूं मैंने किसे देखा…
असलियत को देखा या मजबूरी को देखा।

Mudit

इस महामारी को लुका छुपी बड़ी पसंद है, हम अंदर रहते है तो गायब,और हम बाहर तो ये रौद्र रूप ले लेती है।पता नही ये कितने और दिन घरो में रखेगी, पता नही कितने और लॉकडाउन दिखाएगी किन्तु… आप (जो ये ब्लॉग पढ़ रहे हैं) भी एक मौका जरूर देना खुद को ये सोचने का की अगर “स्वतः बंधन” होता ,तो आप किसके साथ रहते, और क्या क्या करते। उम्र, रिश्ते, रक़म सब परे रख,इज़्ज़त और जज़्बात को ध्यान रखते एक बार जरूर कल्पना करना, क्या पता भविष्य में होने वाला लॉकडाउन  आसानी से कट जाए, क्या पता ये पता चल जाए कि अनलॉक में किससे मिलना है और क्या कहना है सुनना है,और क्या पता ये भी पता चल जाए बंद में गुजारा इस तरह भी किया जा सकता हैं।

Leave a comment