Din-E-Mithaas

जिंदगी का एक अहम हिस्सा ना किसी को चॉकलेट दिए, ना ही किसी से लिए गुजार दिया।

कुछ वर्ष पूर्व जब यह वैलेंटाइन सप्ताह चालू होता था तो बहुत उत्साह रहता था। एक उमंग रहती थी एक लहर हर घड़ी नाजुक उम्र का संदेश देती थी,एक वर्षा होती थी एक अभिलाषा होती थी एक ज्योति थी और फरवरी माह पूरा एक त्यौहार की भांति था और अब यही सोचता हूं कि मैं ये क्या करता था? कितना बेवकूफ था। जिंदगी अब बैंक आधार कार्ड राशन पानी एलआईसी ऑफिस में ही उलझ कर रह गई है।
  अरे मुझे तो इन सब में कोई  दिक्कत नहीं थी पर जब पार्क में एक लड़का-लड़की को हाथ पकड़ के चलते देखा और हाथ भी दोनों के पेंडुलम की भांति टू एंड फ्रो मोशन कर रहे थे तब मन उदास हुआ,तकलीफ तो उस वक्त हुई जब जूली फ्लावर्स वाली दुकान के आगे से निकला तो लोग गुलदस्ते खरीद रहे थे और वैराग्य लेने की इच्छा तो तब होती है जब लोग बड़ी वाली चॉकलेट लेने या देने का स्टेटस लगाते हैं।
कौन सी प्रजाति की मनुष्य होते हैं ? यह रहते कहां है ?मुझे मिलना है उनसे … उनके इस गुण को मुझे अपने जीवन में ग्रहण करना है। काश मेरा जीवन भी सवर जाए! लोगों को मुंह ऐसे हैं जैसे कोई कटोरी मुच गई हो और बाल ऐसे हैं जैसे सदियों से नहाए नहीं हो और बड़ी मोटी वाली चॉकलेट का आदान प्रदान कर रहे हैं। अरे सब लोग स्वतंत्र है,करो जो करना है , पर लोगो को क्यों दिखा रहे हो की तुम्हे कितनी किट-कैट मिली है, कितनी सिल्क मिली है। और दिखा कर तुम लोग साबित क्या करना चाहते हो?
  कोई फिक्र नहीं है सरकारी नौकरी की ,कोई दिक्कत नहीं है के घर तेल का पिंपा लेकर आना है।बस अपने तो चॉकलेट बांटो। डेढ़ सौ से दो सौ रुपए की आती है सिल्क,आज तक के इतिहास में ना किसी से मिली है और ना किसी को देने की हिम्मत इस दिल ने करी है और यह तो सिर्फ उदाहरण है इससे महंगी चॉकलेट भी आती है ,एक वो किशमिश बादाम वाली,एक चॉकलेट तो एक दम खारी जहर आती है, रिच चोको वाली, वो भी लोगो को मिलती है लोग खरीदते भी हैं बताओ?  और जो पैकेट बंद डिब्बे में चॉकलेट आती है,लड्डू नुमा आकृति की उनका जिक्र तो मै करूंगा ही नहीं, क्योंकि इतना पाता है कि वो भी बड़ी महंगी आती है, और वो तो लोग एक दूसरे को ऑनलाइन भी भेजते है। इतनी आजादी इतनी बेख़ौफी इतनी इश्कमिजाजी लोगों को मिलती कैसे हैं?  मुझे तो स्कूल में भी कोई लड़की अपने जन्मदिन पर टौफी देती थी तो उसे खाने में शर्म आती थी,घर आ भाई बहन के साथ मिलकर खाता था और अब … एक अलग ही हवा है। कोई चॉकलेट ले रहा है कोई दे रहा है वह भी खुले आम। मुझे सच में पूछना यार कैसे करते हो? मुझे मार्गदर्शन चाहिए उन लोगों से। इन लोगो को भय नहीं लगता क्या? सच में जो आनंद छुप छुप के प्रेम करने में है ना वो ये आजकल हाथ पकड़ कर घूमने,या अजीबोगरीब स्टेटस लगाने या सरे राह चॉकलेट बाटने या डेट पर जाने में भी नहीं है।
  और यह लोग जो खुले आम चॉकलेट ले – दे रहे हैं  मिसाल बन रहे हैं, हम जो अपना प्रेम गीत, ग़ज़ल, नज़्म में पेश कर रहे है वह  पुराने और बेईमान है। अब मैं रह गया मीठे के नाम पर मोती पाक, पंधारी,डाल के सिरे का जिक्र करने वाला यह दिल बनी हुई,संदेश छपी हुई चॉकलेट्स मेरे तो समझ से बाहर है और मैं जानता हूं कृपा यही रुकी हुई है पर क्या करू?

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   यह दिन-ए-मिठास सिर्फ कहने की बात है लोग मीठा खाते जरूर है पर उगलते जहर ही है। चॉकलेट  सब खाएंगे पर मिठास फिर भी  खोजते रहेंगे, क्योंकि मिठास किसी चॉकलेट में नहीं आपसी ग्रहणशक्ति से आता है, हम अपने सखा/सखी/ हम सफर को कितना समझ पा रहे हैं कितनी इज्जत दे रहे हैं,किस तर्ज़ पर उनसे अपनी जिंदगी साझा कर रहे हैं इन सब से आती है…मन जीभ और जीवन में मिठास।
    यह सब भी कहने की ही बातें हैं दुख तो बहुत होता है कि जिंदगी का अहम हिस्सा ना किसी से चॉकलेट लिए ना किसी को दिए गुजार दिया। ये चॉकलेट डे की तस्वीर तो सभी लगा रहे हैं, अपून की आली डायरेक्ट चौथ की पिक अपलोड करेगी। अख्खा भिडू लोगो देखे गा फिर।
   
पहले इस चॉकलेट डे का कसम से बहुत फितूर था पर समय बदलता ही है अब इसे समझदारी कहूं या मजबूरी कि यह सोचने लग गया हूं कि किसी दूसरे को ही क्यों चॉकलेट दे, मै अपने आप से प्यार करता हूं क्यों ना मैं खुद को  चॉकलेट दू और अपने घर वालों को ही चॉकलेट खिलाऊ।  पर बात वही है जो खुशनसिबी किसी गुलाब से महकते हुए हाथों से चॉकलेट लेने में है ना… बिरो कोई सारू ही कोणी।

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  आज बार-बार यही गीत गुनगुना रहाा हू :
 

चॉकलेट, लाईम जूस, आइसक्रीम, टॉफियाँ
  पहले जैसे अब मेरे शौक हैं कहा
  गुड़िया, खिलोने, मेरी सहेलियाँ
  अब मुझे लगती हैं, सारी पहेलियाँ
  ये कौन सा मोड़ है उम्र का


 
काश हम भी प्रेम की तरह सीढ़ियां लगा  हाथ में पीला गुलदस्ता ले किसी निशा जी की छत पर पहुंचते…

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