Mai Kahu…

एक ही तो जिंदगी,मिल कर रहना…

मिलना ही हो तो कुछ इस तरह मिले
जैसे नवरात्रि और रमज़ान इस बार साथ,
तुम बस इस तरह करना
मै कहूं सयोंग,तुम इत्तेफ़ाक कहना
मै कहूं चैत्र माह,तुम माह-ए-सौंम कहना।

बिन खाए मुझे भी है रहना,
कुछ पिए बिन तुम्हे भी है रहना
मै कहूं उपवास है रखा, तुम रोज़ा हूं रखती कहना।

नेकी दरिया में डालना
सदक़ा कर सवाल क्या करना,
मै कहूं पुण्य उसे,तुम उसे सवाब कहना।

मय से हमेशा तौबा करना
बदनीयत से क्यो कोई काम करना,
मैं कहूं बुरा जिसे,तुम उसे हराम कहना।





शब्द, ताल, तरीका जरूर बदले
याद हमे ऊपर वाले को ही करना
मैं कहूं शाम की आरती,तुम उसे तरावीह कहना।

साथ आंगन में मिल हमे रहना
मिल पकवान जब बन जाए
मै कहूं व्रत खोलना,तुम उसे इफ्तारी कहना।

मैं कहूं माँ अम्बे से,तुम अल्लाह से कहना
अब जल्द निजात मिल जाये इससे
मैं कहूं महामारी जिसे,तुम उसे वबा कहना।

फिर से उमंग आ जानी जिंदगी में,
त्योंहार जल्दी ना बिते ये कहना
मै कहूं नौ दिन पर्व से, तुम पाक तीस दिनो से कहना।

तूबा हद तक मिलती है हमारी करनी
चाहे जिस तरह भी तुम करना,
एक ही तो जिंदगी,मिल कर रहना
इससे ज्यादा और क्या कहना
मै कहूं ये प्यार रखना, तुम भी उंस रखती ... सिर्फ ये कहना। 

PS :- This Nazm is all about a thought, which comes in my mind when I see two festival; of two different cultures shareing a definate period, Reflecting peace love & humanity. By no means can it be used to spread hatred.

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