मैंने इस जगह को किसी महल की तरह सजाया है,इस महल में भीगने की जगह है तो हवा के लिए झरोखे भी, सुगंद में महके बाग़ है तो अंधेरो में गुम गलियारे भी,दीवान ए आम है तो मल्लिका ए हयात के आँगन भी,आपसी रंजिश है तो ऊपर वाली की फ़ज़ल भी। यहाँ जश्न है यहाँ डर भी,गीत हैं,रस्म भी,यहाँ सब कुछ है।
दहलीज
अलामत ए जिस्म कइयों की है…
पर दहलीज के पार मन सिर्फ मेरा