चौथ का चाँद

ये सफीना रस्म ए निस्बत में चाँद दिखाएगी।

पीठ कर मेरी तरफ वो आज भी बैठी
गुड़,कलश,थाली,सींक
साथ करवा भी ले बैठी
आलिका संग ‘करवा लें’ गुनगुनाती
दिख रही वो सोनम सी
मैं तलाशू ऐसी एक जगह,
करवा में दिखे मेरी उसे परछाई
पर तुम्हारी आंखे,होने वाले खाविंद में
फिर भी मैं देख लु सवा औऱ भर
कहोगी तुम फिर मुझे हरजाई
पर करवा तुम बताओ ना…
क्या मैंने हराम किया ?

लाल रंग में अजहद रमी
ललाट पर एक मांग भरी
पाजेब की आवाज़, हीना भी क्या खूब रची
लाल ही गाल और सीधे पलटे की साड़ी
मै लगाऊ काले रंग की टिकी
सियाह में कहीं मेरी ही नज़र ना मार जाए
पर पायल तुम तो बताओ ना…
जाने किसके लिए ये उसने श्रृंगार किया ?

मै कार्तिक का माह, वो कृष्ण पक्ष सी
सबसे ज्यादा मै इंतजार करू,एक झलक दिख जाए
जैसे मै सुहागिन,वो चौथ के चांद सी।
इंतजार वो बिन खाए कुछ करे
वो सिर्फ आस्मा निहारे,मुझे नकारे
जैसे अकेले रहती ज्योति
देर रात करवा चौथ के चांद की।
ए रैना तुम बताओ ना …
मेरा हर कदम गलत
तो उसने क्या ये सही किया?

हर दिद आपकी अब याद होगी
शायद ही कोई रात होगी
जब आपकी याद ना होगी
हर माह,हर तीज,हर त्योहार,हर रींझ
सब कुछ आखरी
कभी याद करूगा,ये चौथ भी आखरी
ना मैंने व्रत किया,ना उससे उसका कोई हक लिया
तो चौथ तुम तो बताओ ना…
क्यों मुझे उसने परेशान किया?

चांद उसे देखे और वो चांद के दीदार में
अर्घ दे वो,मुस्ककराते हुए बतियाए ,

ये बेशक वो ही, तृतीय पर जो बतियाए
एक ये मेरी आंखे,अब भी उसकी ही फिराक में।
वो अब संगिनी है,रस्म ए निसबत याद दिलाए
वो जहाँ रहे चहकती,आज़ाद, आबाद रहे
जिंदगी खुशनुमा, दिलकश,दिलशाद रहे
देर रात ये मेरा मन कहे
खैर कुछ तो सोच समझ के किया उसने
पर खुद से मोहलत नही दी उसने
अब चाँद तुम ही जानो ये…
चौथ का व्रत उसने जिसके लिए किया।

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